डॉ. भीमराव अंबेडकर के शिक्षा संघर्ष

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन शिक्षा के प्रति उनके संघर्ष और समर्पण की मिसाल है। उनके बचपन से लेकर उच्च शिक्षा तक का सफर सामाजिक भेदभाव और आर्थिक कठिनाइयों से भरा था, लेकिन उन्होंने अपनी लगन और दृढ़ संकल्प से हर बाधा को पार किया।

1. प्राथमिक शिक्षा में भेदभाव

भीमराव अंबेडकर को स्कूल में बचपन से ही छुआछूत का सामना करना पड़ा। उन्हें अन्य सवर्ण बच्चों के साथ बैठने की अनुमति नहीं थी।

  • स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता था और प्यास लगने पर कोई भी उन्हें पानी नहीं देता था।
  • यदि कोई ऊँची जाति का व्यक्ति पानी पिलाता भी था, तो ऊँचाई से गिराकर दिया जाता था ताकि उनका स्पर्श न हो।
  • कक्षा में शिक्षक भी उनसे भेदभाव करते थे और उन्हें पढ़ाई में उचित सहायता नहीं मिलती थी।

2. माध्यमिक शिक्षा में संघर्ष

भीमराव अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा सतारा और मुंबई में हुई। इस दौरान उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने का संकल्प लिया, लेकिन जातिगत भेदभाव उनके रास्ते में रुकावट बना।

  • कई जगहों पर उन्हें बैठने, खाने और स्कूल की सुविधाओं का उपयोग करने से वंचित रखा जाता था।
  • सहपाठी और समाज उन्हें हीन दृष्टि से देखते थे, जिससे मानसिक कष्ट का सामना करना पड़ा।

3. उच्च शिक्षा के लिए आर्थिक कठिनाई

उनकी पढ़ाई में सबसे बड़ी बाधा आर्थिक कठिनाई थी। उनकी जाति के लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर बहुत कम मिलता था।

  • बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की।
  • इससे उन्हें मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश मिला, जो उस समय किसी दलित के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी।

4. विदेश में शिक्षा और कठिनाइयाँ

1913 में, भीमराव अंबेडकर को अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिला। वहाँ उन्होंने एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ उन्होंने डी.एससी. और कानून की डिग्री प्राप्त की।

  • विदेश में उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा, जिससे वे खुलकर अध्ययन कर सके।
  • हालांकि, वित्तीय संकट के कारण कई बार उनकी पढ़ाई अधर में पड़ने की नौबत आई।
  • बड़ौदा के राजा द्वारा दी गई छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त होने के कारण उन्हें कुछ समय के लिए शिक्षा छोड़कर भारत लौटना पड़ा।

5. समाज के लिए शिक्षा का संदेश

अपने संघर्षों से सबक लेते हुए, डॉ. अंबेडकर ने समाज में शिक्षा के महत्व को फैलाने का कार्य किया। उन्होंने कहा:
“शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।”
उन्होंने दलितों और वंचित वर्गों को शिक्षित करने के लिए कई आंदोलन शुरू किए और शिक्षा को सामाजिक समानता का सबसे बड़ा हथियार बताया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का शिक्षा संघर्ष केवल व्यक्तिगत उपलब्धि तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने पूरे समाज को शिक्षित करने का संकल्प लिया। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा ही असली शक्ति है, जो सामाजिक बदलाव ला सकती है।

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