भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 109: हत्या के प्रयास की कानूनी व्याख्या

भारत में अपराधों के लिए बनाए गए नए कानून भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) ने पुराने भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इन्हीं में से एक है धारा 109, जो IPC की धारा 307 की जगह ली है। यह धारा हत्या के प्रयास (Attempt to Murder) से संबंधित है।

🔹 धारा 109 क्या कहती है?

BNS की धारा 109 के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति इस इरादे से कोई कार्य करता है कि उसका परिणाम मृत्यु हो, और वह कार्य यदि किसी की जान ले सकता है, तो वह हत्या के प्रयास का दोषी माना जाएगा—even अगर असल में मृत्यु नहीं हुई हो।

➤ दो मुख्य स्थितियां हैं:

  1. साधारण हत्या का प्रयास:
    • अगर कोई व्यक्ति किसी को जान से मारने की नीयत से कोई कार्य करता है, और वह कार्य यदि सफल हो जाता तो हत्या मानी जाती, तो ऐसे कार्य को हत्या का प्रयास माना जाएगा।
    • यदि उस प्रयास के दौरान चोट लगती है, तो दंड और भी कठोर हो सकता है।
  2. आजन्म कारावास की सज़ा काट रहे अपराधी द्वारा हत्या का प्रयास:
    • अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, और वह किसी को मारने का प्रयास करता है तथा चोट भी पहुंचाता है, तो उसे मृत्युदंड या पूरी उम्र की सजा (natural life imprisonment) दी जा सकती है।

🔹 सज़ा का प्रावधान

BNS की धारा 109 के तहत निम्न सज़ाएं निर्धारित की गई हैं:

  • सामान्य हत्या का प्रयास:
    • अधिकतम 10 साल तक की कैद और जुर्माना।
    • यदि चोट भी पहुंचाई जाती है, तो उम्रकैद तक की सजा या वही 10 साल तक की कैद और जुर्माना।
  • आजीवन सजा काट रहे व्यक्ति द्वारा प्रयास:
    • मृत्युदंड, या
    • प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद (यह आजीवन कारावास से भी सख्त है, जिसमें रिहाई का प्रावधान नहीं होता)।

🔹 अपराध की प्रकृति

  • संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence):
    पुलिस वारंट के बिना गिरफ्तारी कर सकती है।
  • गैर-जमानती (Non-Bailable):
    इस अपराध में ज़मानत मिलना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। पीड़ित या समाज के लिए खतरे की आशंका होने पर ज़मानत नहीं दी जाती।
  • विचारणीय न्यायालय (Triable by):
    इस अपराध का विचारण सेशन न्यायालय (Court of Session) में होता है।

🔹 उदाहरणों के माध्यम से समझना

BNS की धारा 109 को नीचे दिए गए उदाहरणों से बेहतर समझा जा सकता है:

✔️ उदाहरण 1:

‘अ’, ‘ब’ को मारने की नीयत से उस पर गोली चला देता है। गोली लगती है लेकिन ‘ब’ बच जाता है।
➡️ इस स्थिति में, ‘अ’ ने हत्या का प्रयास किया है और उस पर धारा 109 के तहत मुकदमा चलेगा।

✔️ उदाहरण 2:

‘क’, ‘ख’ को मारने के इरादे से उसके खाने में ज़हर मिला देता है। ‘ख’ वह खाना खा लेता है लेकिन समय पर इलाज हो जाता है और वह बच जाता है।
➡️ यह भी हत्या का प्रयास माना जाएगा।

✔️ उदाहरण 3:

‘ग’, किसी को मारने के इरादे से ज़हर खरीदकर खाना तैयार करता है, लेकिन उसे परोसता नहीं है।
➡️ यह स्थिति हत्या का प्रयास नहीं बल्कि मात्र तैयारी (Preparation) मानी जाएगी।
➡️ जैसे ही वह खाना परोसेगा या देगा, वही प्रयास (Attempt) बन जाएगा और धारा 109 लागू होगी।


🔹 IPC से BNS तक: क्या बदला?

IPC की धारा 307 और BNS की धारा 109 में मूल भाव एक ही है, लेकिन BNS में कुछ महत्वपूर्ण सुधार और स्पष्टता लाई गई है:

  1. स्पष्ट भाषा:
    पुराने कानूनों में कानूनी भाषा अधिक कठिन थी। BNS में सरल और स्पष्ट शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  2. Natural Life Imprisonment की व्याख्या:
    BNS में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जब सजा “प्राकृतिक जीवनकाल तक” की हो, तो इसका मतलब है कि वह व्यक्ति जिंदगी भर जेल में रहेगा, जब तक कि कोई विशेष क्षमा न दी जाए।
  3. न्यायिक विवेक:
    BNS में न्यायालय को अपराध की प्रकृति, आरोपी का व्यवहार और पीड़ित की स्थिति के अनुसार अधिक विवेकशील दंड निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है।

🔹 सामाजिक और कानूनी महत्व

हत्या का प्रयास एक गंभीर अपराध है। हालांकि इसमें वास्तविक मौत नहीं होती, लेकिन इरादा, कर्म, और नतीजा तीनों को गंभीरता से देखा जाता है।

इस तरह के अपराधों से न केवल एक व्यक्ति बल्कि पूरा समाज भयभीत हो सकता है। इसलिए भारतीय न्याय व्यवस्था ने इसे गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा है।


🔹 निष्कर्ष

BNS की धारा 109 भारतीय कानून में हत्या के प्रयास से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह न केवल अपराध की गंभीरता को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि समाज में ऐसे कृत्यों पर सख्त दंड दिया जाए।

इस धारा के अंतर्गत:

  • इरादा और कार्य—दोनों पर जोर दिया गया है।
  • सजा परिस्थिति अनुसार तय होती है, और यदि चोट या गंभीरता अधिक है, तो सजा भी बढ़ जाती है।
  • आजन्म सजा काट रहे अपराधी द्वारा किया गया प्रयास और भी गंभीर माना जाता है।

नए कानून में स्पष्टता और कठोरता दोनों को जगह दी गई है, जिससे न्याय प्रणाली अधिक प्रभावी और जनहितकारी बन सके।